प्राण एक ऐसी दिव्य धरोहर है,जो सभी को मुफ्त में मिली है।
यह एक स्वच्छन्द लहर है जो आती है और जाती है लेकिन कहांँ से आती है और कहांँ जाती है, कोई नहीं जानता।
प्राणों का पता तभी चलता है जब वे रूक जाते है।
मनुष्य को जो प्राणों का प्रसाद मिल रहा है वह सिर्फ जिन्दा रहने के लिए ही नहीं है बल्कि यह ऐसा खजाना है जो व्यक्तित्व के गहरे रहस्यों को खोलता है।
प्राणों के भीतर की शक्ति को जिन्होंने भी पहचाना उन्होंने ही प्राणों के सुमिरण का आविष्कार किया और हृदय में शान्ति के अनुभव से अपना जीवन सफल बनाया।
पुराने समय में लोगों के व्यक्तित्व में ज्यादा जटिलता नहीं थी और न ही उस समय जीवन में इतना तनाव था। लोग सीधे और सरल थे लेकिन आज इस वैज्ञानिक युग के व्यस्त जीवन में व्यक्ति बहुत अधिक तनावग्रस्त व अशान्त है।
इसलिए प्राणों के भीतर सुमिरण का अभ्यास प्राणों के भीतर की शक्ति को पहचानने के लिए किया जाता है।
प्राणों का हमारे व्यक्तित्व से इतना गहरा सम्बन्ध है कि उस पर जरा सी लगी चोट सब तरफ प्रतिध्वनित हो जाती है।
अभ्यास से मन सदगुरुदेव की कृपा से नाम-सुमिरण में लीन हो जाता है तभी व्यक्ति को स्वयंँ का बोध हो जाता है और हृदय में विराजमान शान्ति का अनुभव हो जाता है।
यदि प्रत्येक व्यक्ति अभ्यास के प्रति प्रतिबद्ध होकर स्वयं का बोध कर ले तो प्राणों के आने-जाने का सम्पूर्ण रहस्य खुल जाता है।
प्राणों की यह ऐसी दिव्य धरोहर है कि यदि अभ्यास से प्रत्येक व्यक्ति प्राणों के भीतर की शक्ति की पहचान कर ले तो सम्पूर्ण विश्व शान्ति की खुशबू से महक सकता है।